चंद गलियों से होकर गुज़री ज़िन्दगी, कुछ लम्हे भर की साँसे;
आज चलते चलते रुक गयी घड़ी की सुईयां।
लो ख़त्म हुआ आज यह जीने का भ्रम!
बस कुछ दिन पहले ही की तो बात हैं
वो नंगे पाँव दौड़ा करती थी,
इस आँगन की गीली मिट्टी में उसकी खुशबू बसा करती थी।
कुछ दूर का सफर तै कर लिया शायद?
अब उसकी पायल की झनक नहीं सुनायी देती हैं ।
मैं कौन हु तुम नहीं जानते या जानबूझ कर नहीं पहचानते?
एक पुराना मोहल्ला हूँ मैं, जहाँ अब कोई नहीं बस्ता
बस धुंद बनी कुछ यादों को अक्सर देखा करता हूँ इन गलियों से गुज़रता।
आज तंग लगती यह गालिया, उसके खेल का मैदान हुआ करती थी
सुबह-सुबह बड़े बेमन, यहीं से स्कूल के लिए धीरे धीरे चलती थी।
अकेली नहीं थी वह; बस तन्हाई को साथ रखने का शौक था।
मेरे पास आती तो खूब बातें करती थी,
पूछती – याद हैं तुमको कभी उस हवेली का कितना रौब था?
जानता हूँ उसे अकेले घूमने की आदत हैं;
मैंने बहुत देखा हैं उससे इन गलियों की ख़ाक छानते।
जाने क्या ढूंढती थी दिन भर? बस फिरती थी यूँ ही हलकी सी मुस्कराहट बाँटते ।
मैं जानता हूँ, फिर आ जायेगी वो इन गलियों मैं वापस,
एक याद बन कर धुंधली सी, झनकती हुई पायल बांधे।
सराहनीय और शानदार 👍👍👍👍
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Thank you!
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Welcome👍👍💐
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