इन वीरान अधबने मकानों ने
खंडहरों के मायने बदल दिए
कौन कहेगा कभी यहाँ शहर बसा करते थे?
कभी इन घरों में लोग रहा करते थे?
सदियों से बसे शहरों के उजड़ जाने का इतिहास पढ़ा था
बिन बसे ही शहरों को उजड़े हुए आज देखा है
कितनी आँखों के सपने अधूरे खड़े हैं
सीमेंट के अधूरे मकानों कि तर्ज़ पर
कभी इनके नसीब में भी शायद दिवाली हो….
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