हमें ना इश्क़ हो गया है
अक्सर बातों बातों में बात ही भूल जाते हैं
फिर जब याद आती है बात, तो कह नहीं पाते हैं
हमें ना इश्क़ हो गया है
सुबह गुलाबी आसमान की सिलवट समेट किताबों के पन्नों में छुपा देते हैं
फ़िर दिन भर उन्ही पन्नों में के बीच वो पल ढूंढते रह जाते है
हमें ना इश्क़ हो गया है
बिन बोले सब कुछ समझ जाने का तकाज़ा करते हैं
फिर जब वो बोल नहीं पाते तो नाराज़ भी हम ही रहा करते हैं
हमें ना इश्क़ हो गया है
कभी छुप छुप के मिलने के मौके ढूंढ लेते हैं
नासमझी भरी अनगिनत बातों पर अब खुल कर हँस देते हैं
हमें ना इश्क़ हो गया है
सवालों के बहुत से दायरे पार कर निकल जाते हैं
फ़िर बहुत सी झूठी कहानी जवाबो में कह जाते हैं
हमें ना इश्क़ हो गया है
रात आँखें बुझा देती हैं पर दिल जगा रहता है
मोबाइल पर चलती उंगलियों के तर्ज़ पे स्याह रंग बिखेरता है
हमें ना इश्क़ हो गया है
अब क्या ही कहें क्यूं हो गया है…
हमें ना इश्क़ हो गया है

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