जानती हो, तुम उस सिगरेट की तरह हो
जिसे मुँह से लगाओ तो ज़हर है
और दूर रखो तो तड़प
पास आती हो ललचाने के लिए
और फिर खुद ही कह जाती हो
‘तुम्हारे दिल के लिए अच्छी नहीं मैं’
काम में उलझा लेता हूँ खुद को
तुम्हारी याद को दिन भर की परेशानियों में
ढक लेता हु अक्सर
मगर इस शाम का क्या करूँ
बर्फ जाम से टकराते ही फिर
सिगरेट की तरह तुम भी…
Leave a Reply