सिगरेट

जानती हो, तुम उस सिगरेट की तरह हो जिसे मुँह से लगाओ तो ज़हर है और दूर रखो तो तड़प पास आती हो ललचाने के लिए और फिर खुद ही कह जाती हो 'तुम्हारे दिल के लिए अच्छी नहीं मैं' काम में उलझा लेता हूँ खुद को तुम्हारी याद को दिन भर की परेशानियों में... Continue Reading →

हमें ना इश्क़ हो गया है

हमें ना इश्क़ हो गया हैअक्सर बातों बातों में बात ही भूल जाते हैंफिर जब याद आती है बात, तो कह नहीं पाते हैंहमें ना इश्क़ हो गया हैसुबह गुलाबी आसमान की सिलवट समेट किताबों के पन्नों में छुपा देते हैंफ़िर दिन भर उन्ही पन्नों में के बीच वो पल ढूंढते रह जाते हैहमें ना... Continue Reading →

मृत्यु का मौन

शोर गूँज रहा, मृत्यु के मौन सा आँख अब नम नहीं बुझ गया आँसू का जो दौर था चमक नगरी की चौंध में हाथ तुमने सेक लिए उस ठंडी चिता की आग देख नैन क्यों फ़ेर दिए राम का सा राज्य था रावण भी मर्यादा में रहता ये कौन राम राज्य है जहाँ आदमी राक्षस... Continue Reading →

एक खिड़की मेरे नाम करना 

जब एक रोज हार जाऊं मैं इस हाथ भर के तमाशे से जब जिस्म भी उठते उठते दोपहर कर दे जब आवाज कानों में गूँज कर बिखर जाये और बारिश भी रज़ाई की याद दिलाए उस मोड़ पे ज़िन्दगी के एक बात यही तुम याद रखना भूले बिसरे से अपने घर में एक खिड़की मेरे... Continue Reading →

कुर्सी का मोल

चार पाए और एक पट्टा ज्यादा नहीं है मोल मेरा कभी आम, कभी शीशम बस लकड़ी भर का तोल मेरा अरे, कभी तो वो भी नकली... अरे कभी तो वो भी नकली फिर भी मैं किस्सों में हूँ एक अकेली जान हूँ देखों फिर भी मैं हिस्सों में हूँ ग़ज़ब महा तमाशा है हिंद का... Continue Reading →

यादों का मोहल्ला

भूला बिसरा सा एक मोहल्ला कुछ यादों के जमघट जैसा, बचपन का सा शोर उठा था कहीं हँसी, कहीं खटपट जैसा। लाख भुलाएँ नहीं भूलेंगे रंगों से भरी बैठक की दीवार पेड़ों का झुरमुट बना कर जब बंद कमरे में आयी बहार। उलझे हुए से किस्से कुछ एक बूढ़ी दादी बालों संग सुलझा गई, वो... Continue Reading →

एक कलश भर इंसान

एक कलश भर राख बस इतना ही इंसान रह जाता है, जिसे रोज़ हम भूल जाते थे वह अब खुद ब खुद याद आता है।   उसके रहते जीवन संघर्ष हमने कभी किया नहीं, अब संघर्ष है जीवन में तो वो साथ हमारे रहा नहीं।   जीवन अमृत उस हाथ से चख हमने पल-पल जीना... Continue Reading →

अधूरे शहर

इन वीरान अधबने मकानों ने खंडहरों के मायने बदल दिए कौन कहेगा कभी यहाँ शहर बसा करते थे? कभी इन घरों में लोग रहा करते थे? सदियों से बसे शहरों के उजड़ जाने का इतिहास पढ़ा था बिन बसे ही शहरों को उजड़े हुए आज देखा है कितनी आँखों के सपने अधूरे खड़े हैं सीमेंट... Continue Reading →

क्या फिर भारत के बेटे बन कर आओगे?

राम के घर विभीषण ने अपना दरबार लगाया है रेहमान भी देख, चौंक गया घनघोर कलयुग आया है   सुनकर ललकार तुम्हारी दुश्मन थर थर काँप उठे पर घर के भेदी निर्लज्ज हो तुम्हारे बलिदान पर सवाल करें   जवानी की कच्ची नींद से बस अभी तुम जागे थे सर पर अपने कफ़न बांधे कतार... Continue Reading →

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